(PSLV-वर्कहॉर्स ऑफ़ इसरो ; एक समग्र अध्ययन)



अंतरिक्ष अनुसंधान के प्रारंभिक दिनों में भारत अपने उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने हेतु पूर्णतया दूसरे देशों पर निर्भर था।क्योंकि उस समय भारत के पास कोई रॉकेट नहीं था।सर्वविदित है कि अप्रैल 1975 में प्रक्षेपित भारत का प्रथम उपग्रह “आर्यभट्ट”सोवियत की सहायता से लॉन्च किया गया था।

लेकिन अब परिस्थितियाँ बदल गई है, क्योंकि आज भारत के पास कम लागत वाली दुनिया की सर्वश्रेष्ठ प्रमोचन प्रणाली विद्यमान है जिसकी सराहना विश्व भर में की जाती है।वर्तमान समय में इसरो के पास PSLV,SSLV, GSLV MK-2 तथा LVM-3 जैसे आधुनिक रॉकेट विद्यमान् है,जिन्होंने भारत को नई बुलंदियों तक पहुंचाया है।हालाँकि इसरो ने शुरुआत में SLV-3 व ASLV जैसे प्रमोचन यान विकसित किए,जो पूर्णतः ठोस ईंधन पर आधारित थे ।लेकिन इसरो को वास्तविक सफलता “पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल”(PSLV) के विकास के साथ मिली,जो अभी भी भारत का सबसे भरोसेमंद 

रॉकेट माना जाता है ।आइए विस्तार से जानते हैं PSLV के बारे में-

ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान ( PSLV ):- 

भारत द्वारा स्वदेशी तकनीक पर निर्मित तृतीय पीढ़ी का प्रथम प्रमोचन यान, जो कि  ठोस ईंधन के साथ-साथ तरल ईंधन से प्रणोदित होने वाला प्रथम यान है। 

इसका प्रथम सफल प्रक्षेपण 1994 में किया गया।हालाँकि प्रारंभ में PSLV का विकास केवल ध्रुवीय कक्षा (सौर तुल्यकालिक कक्षा ) में सुदूर संवेदी उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के उद्देश्य से किया गया।लेकिन बाद में PSLV की विश्वसनीयता व सटीकता को देखते हुए इसका उपयोग भू-स्थैतिक व भू-तुल्यकालिक कक्षा के साथ साथ अंतरग्रहीय अभियानों में भी किया जाने लगा।ग़ौरतलब है कि 2008 में चंद्रमा के अध्ययन हेतु भेजा गया ऑर्बिटर स्पेसक्राफ्ट “चंद्रयान-1” PSLV C11 के द्वारा ही भेजा गया।तत्पश्चात क्रमशः 2013 व 2023 में मंगल  ग्रह तथा सूर्य के अध्ययन हेतु भेजे गए स्पेसक्राफ्ट “मंगलयान”व “आदित्य L-1”भी PSLV के द्वारा ही भेजे गये।

2019 से पहले PSLV तीन संस्करणों यथा- PSLV-G , PSLV-CA तथा PSLV-XL के रूप में प्रयुक्त होता था।परंतु बाद में इसे सँवर्धित करके बूस्टर की संख्या के अनुसार PSLV के चार वेरीएंट निर्मित किए गए, जिसमें PSLV-XL, PSLV-QL,PSLV-DL तथा PSLV- CA सम्मिलित है जिनका उपयोग वर्तमान समय में इसरो आवश्यकतानुसार करता है। ये सभी संस्करण चार चरणों से युक्त है,जिसमें प्रथम व तीसरे चरण में ठोस ईंधन तथा दूसरे व चतुर्थ चरण में तरल ईंधन का उपयोग किया जाता है ।PSLV के प्रथम चरण के साथ पार्श्व में ठोस प्रणोद पर आधारित स्ट्रेप ऑन बूस्टर जुड़े होते हैं,जो कि लिफ़्टऑफ़ के समय भारी भरकम रॉकेट को पृथ्वी की सतह से ऊपर उठाने में मदद करते है।

( PSLV की संरचना व उनके विभिन्न चरण)

ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान के अग्रभाग में पेलोड एरिया होता है,जिसमें स्पेसक्राफ्ट अथवा उपग्रह रखा जाता है तथा उसके पीछे 4 चरणों से युक्त प्रणोद चेंबर होता है,जिसमें प्रक्षेपण के समय अलग-अलग ईंधन को भरा जाता है। जो कि निम्न है-

प्रथम चरण (PS-1):- PSLV का सबसे निचला भाग जो कि  प्रारंभ में प्रज्ज्वलित होकर रॉकेट को ऊपर उठाते हैं प्रथम चरण कहलाता है।जिसमें ठोस ईंधन “हाइड्रॉक्सिल टर्मिनेटेड पॉली ब्यूटाडाईन”( HTPB) आधारित ठोस इंजिन S139 का उपयोग किया जाता है, जो कि लगभग 4800 किलो न्यूटन का थ्रस्ट पैदा करता है।

इस प्रथम चरण के साथ ठोस ईंधन पर आधारित कुछ स्ट्रेप ऑन बूस्टर भी लगाए जाते हैं,जो कि प्रक्षेपण वाहन की क्षमता को बढ़ाते हुए रॉकेट को सतह से ऊपर उठाने हेतु अत्यधिक थ्रस्ट पैदा करते हैं। प्रत्येक बूस्टर में 12.2 टन ठोस प्रणोदक के रूप में HTPB का उपयोग किया जाता है तथा इंजन के रूप में ठोस रॉकेट मोटर S12 का प्रयोग किया जाता है।

PSLV के प्रथम चरण में रॉकेट के स्ट्रेप ऑन मोटर ( बूस्टर ) व प्रथम भाग दोनों ही सम्मिलित होते हैं।इसमें सबसे पहले बूस्टर प्रज्ज्वलित होते हैं तत्पश्चात क्रमशः प्रथम, द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ चरण के ईंधन का उपयोग किया जाता है।उपयोग लेने के बाद इन चरणों को रॉकेट की बढ़ती ऊँचाई के साथ अलग कर दिया जाता है,ताकि रॉकेट का वज़न हल्का होता रहे।



PSLV में प्रथम चरण के साथ लगे इन बूस्टर की संख्या एक समान नहीं होती है ,जहाँ PSLV-XL में बूस्टर की संख्या 6 होती है,वहीं PSLV-QL तथा PSLV-DL में इनकी संख्या क्रमश: 4 तथा 2 होती है,जबकि PSLV-CA में कोई बूस्टर नहीं लगाया जाता है।

द्वितीय चरण ( PS-2) :- प्रथम चरण के अलग होने के बाद द्वितीय चरण का प्रज्ज्वलन प्रारंभ होता है इस चरण में तरल vikas इंजन तथा ईंधन के रूप में अनसिमेट्रीकल डाई-मिथाईल हाइड्राजीन ( UDMH ) का उपयोग किया जाता है।तथा आक्सीकारक के रूप में नाइट्रोजन ट्रेटा आक्साइड (N2O4) का प्रयोग होता है। इस चरण में 799KN थ्रस्ट पैदा होती है।

तृतीय चरण ( PS-3 ):- द्वितीय चरण के पृथक होने के पश्चात तृतीय चरण का प्रज्ज्वलन प्रारंभ होता है जोकि प्रक्षेपण यान को वायुमंडलीय चरण से ऊपर उच्च गति प्रदान करता है।यह ठोस ईंधन HTPB पर आधारित होता है,जिसमें इंजन के रूप में ठोस रॉकेट मोटर S7 का प्रयोग किया जाता है,जो की अधिकतम 240 किलो न्यूटन का थ्रस्ट पैदा करता है।

चतुर्थ चरण ( PS-4 ) :- PSLV का सबसे ऊपरी चरण, जो दो तरल इंजन पर आधारित है। जिसका प्रत्येक इंजन 7.3 किलो न्यूटन की थ्रस्ट पैदा करता है और इसमें ईंधन के रूप में मोनो- मिथाइल हाइड्राजीन (MMH) तथा आक्सीकारक के रूप में नाइट्रोजन की मिश्रित ऑक्साइड (MON) का उपयोग किया जाता है। पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल के इसी चतुर्थ चरण की सहायता से आख़िरकार उपग्रह को नियत कक्षा में स्थापित किया जाता है।

(PSLV की लॉन्च क्षमता )

PSLV के अलग-अलग प्रकार के अनुसार इनकी क्षमता भी अलग-अलग है लेकिन सामान्यतय: यह 1750 किलो के पेलोड को 600 किमी. की ऊँचाई पर स्थित सौर-तुल्यकालिक कक्षा (LEO) में तथा 1425 किलो के उपग्रह को भू -स्थैतिक तथा भू-तुल्यकालिक कक्षा में भेजने की क्षमता रखता है।

PSLV -XL (एक्स्ट्रा लार्ज) PSLV श्रेणी का सबसे शक्तिशाली रॉकेट है,जिसकी कुल ऊँचाई 44.4 मीटर तथा कुल वज़न 320 टन है।

( PSLV का महत्व )

1) PSLV तरल चरणों से लैस प्रथम भारतीय रॉकेट है,जिसके अनुभव से ISRO को तरल ईंधन पर आधारित क्रायोजनिक इंजन के विकास में मदद मिली।

2) PSLV के विकास से पृथ्वी के अलावा अन्य पिंडों तक हमारी पहुँच में वृद्धि हुई।ग़ौरतलब है कि PSLV की सहायता से चन्द्रमा ,मंगल व सूर्य के अध्ययन हेतु क्रमशः चंद्रयान -प्रथम ,मंगलयान व आदित्य L-1 मिशन सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किए गए है।

3) PSLV की सटीकता,बेहतर गुणवत्ता तथा अपेक्षाकृत कम क़ीमत पर प्रक्षेपण की क्षमता से ISRO पर विदेशी विश्वास में वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप PSLV अन्य देशों के  उपग्रहों को लॉन्च करके विदेशी मुद्रा का अर्जन भी कर रहा है।

4) PSLV की सहायता से अलग -अलग कक्षाओं में एक साथ कई उपग्रहों को भेजा जा सकता है।

5) PSLV की सहायता से 1994 से लेकर अब तक कुल 60 प्रक्षेपण किए गए हैं,उसमें से 57 मिशन सफल रहे हैं,जो अपने आप में एक कीर्तिमान है ।

6) PSLV का विकास पूर्णतया स्वदेशी तकनीक पर आधारित है,इससे मिसाइल तकनीक में वृद्धि हुई है।

अतः स्पष्ट है कि PSLV की इन्हीं क्षमताओं के कारण यह रॉकेट वर्तमान में ISRO के वर्क हॉर्स के नाम से जाना जाता है। हालाँकि आने वाले समय में इसरो इसे निजी हाथों में सौंपने पर विचार कर रहा है।



लेखक-माँगी लाल विश्नोई

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